नियम के तहत जनता की सेवा करने के लिए जिले के विभिन्न दारोगा व इंस्पेक्टर में से एक को चुनकर थानाध्यक्ष बनाया जाता है। कुर्सी मिलते ही कई थानाध्यक्ष बेहतरीन काम करने के बजाय खुद ही गैरकानूनी कार्य में शामिल होकर वर्दी को दागदार करने में लग जाते हैं। इसमें हाल के दिनों में नए बैच के कई दारोगा की वर्दी दागदार हो चुकी है। जिन्हें थानाध्यक्ष की कुर्सी तो दी गई, लेकिन उनसे संभली नहीं।
लोगों को कानून का पाठ पढ़ाने वाले ये थानाध्यक्ष खुद ही कानून को तोड़ने में लग गए। नतीजा हाल के दिनों में जिले के कांटी, पानापुर करियात, हत्था, बेला और करजा थानाध्यक्षों को निलंबित किया जा चुका है। फिर भी कुर्सी पर जमे अन्य वदीर्धारी सबक नहीं ले रहे हैं।
थाना पहुंचने वाले लोगों से अच्छे से बात नहीं करने और वर्दी का धौंस दिखाने की अक्सर शिकायत वरीय अधिकारियों के पास पहुंचती है। इस पर वरीय अधिकारियों द्वारा चेतावनी दिया जाता है। कई वदीर्धारियों पर पहले भी कार्रवाई हो चुकी है, लेकिन थाने की व्यवस्था सुधर नहीं रही है।
ताजा मामला तत्कालीन करजा थानाध्यक्ष बीरबल कुशवाहा का है। जिन पर बालू माफिया से साठगांठ का आरोप लग चुका है। वरीय अधिकारियों की जांच रिपोर्ट में थानाध्यक्ष की भूमिका को संदिग्ध पाया गया। इसके बाद एसएसपी सुशील कुमार ने निलंबित कर दिया।
इसके पूर्व तत्कालीन बेला थानाध्यक्ष रंजना वर्मा पर जब्त शराब की विनष्टीकरण के दौरान लापरवाही का आरोप लगा है। मामले में रंजना वर्मा को निलंबित किया गया। साथ ही थानाध्यक्ष के निजी मुंशी समेत दो आरोपितों को शराब के खेल में जेल जाना पड़ा।
इसके पूर्व तत्कालीन पानापुर करियात थानाध्यक्ष राजबल्लभ यादव को हाजत में एक युवक की पिटाई के मामले में निलंबित किया जा चुका है।
इसके अलावा, तत्कालीन हत्था थानाध्यक्ष शशिरंजन को एक महिला पुलिसकर्मी के साथ अभद्र व्यवहार करने के मामले में निलंबित किया गया।