शराबबंदी पूर्ण रूप से लागू नहीं होने के पीछे कुछ राजनेता का हाथ
पूर्ण रूपेण शराबबंदी हो इसके लिए मुख्यमंत्री को कसनी होगी प्रशासन पर लगाम





एक तरफ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में पूर्ण शराब बंदी की घोषणा की। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में पूर्ण शराब बंदी हो इसके लिए हर तरह से प्रयास किया। इसके उन्होंने अन्य अन्य तरीकों से शराब बंदी को लेकर जागरूकता अभियान चलाया। लेकिन फिर भी शराब तस्करों व पियक्कड़ों पर लगाम लगाने में उत्पाद विभाग एवं पुलिस प्रशासन फेल साबित हो रहा है। इसे सिस्टम की दोष माने या मिलीभगत जो भी हो लेकिन पूर्ण रूप से शराब बंदी हो गया यह कहना उचित नहीं होगा। क्योंकि पूरे बिहार का ग्राफ देखा जाए तो इसका उदाहरण प्रतिदिन सामने आता है। शराब बंदी कानून लागू होने के बाद से अब तक उत्पाद विभाग ने हजारों जगहों पर छापेमारी की। इनमें हजारों धंधेबाजों को गिरफ्तार किया गया। लेकिन शराब बंद होने के बावजूद हर जिले में खुलेआम शराब धंधेबाज अपना धंधा चल रहे हैं और पुलिस छापेमारी और गिरफ्तारी तक सीमित कर रह गई है। जिसके कारण धंधेबाजों में भय खत्म हो गई है। पूर्ण शराबबंदी के बावजूद बिहार हर जिले में हर दिन शराब बरामद होना और तस्करों का पकड़ा जाना भी लुंज-पूंज व्यवस्था की पोल खोलने के लिए काफी है। कुछ माह पूर्व में भगवानपुर और नवीगंज में दिल दहला देने वाली घटनाओं के बावजूद न तो पीने वाले सबक सीख रहे हैं और न शराब तस्करी पर लगाम लगाने वाले ही सख्ती बरत रहे हैं। वहीं बॉर्डर क्षेत्र में दो पहिया वाहन में शराब रखकर लाने और बेचने में आसान होता है। जिसके वजह से धंधेबाज दोपहिया वाहन आसानी से शराब के मामले में उपयोग करते हैं। इनमें से अधिकांश दो पहिया वाहन चोरी के होते है। वही कुछ विश्ववश सूत्रों की मानें तो प्रशासन चाहे तो रोक संभव है। प्रशासन चाह दे तो कुछ भी असंभव नहीं है। शराबबंदी पूर्ण रूप से लागू नहीं होने के पीछे कुछ राजनेता है। इस वजह से प्रशासन भी प्रभावी कार्रवाई नहीं कर पाता है। जब कहीं हादसा होता है तो प्रशासन को भी जानकारी होती है कि कौन कारोबार कर रहा है तो उसमें से कुछ पकड़कर कर दिखा दिया जाता है। ताकि लोग समझ जाए कि प्रशासन इस मामले में सतर्क है। यहीं वजह है कि बिहार में शराबबंदी लागू होने के वाबजूद भी शराबबंदी पूर्ण रूपेण प्रभावी नहीं हो रही है।