अमन साहू के एनकाउंटर की घटना ने यूपी के कानपुर निवासी गैंगस्टर विकास दुबे को एसटीएफ द्वारा मार गिराए जाने की घटना की याद दिला दी है। दोनों की मौत की स्क्रिप्ट लगभग एक जैसी है।
इंटरनेट मीडिया पर भी दिनभर यह चर्चा होती रही कि कानपुर वाले विकास दुबे की तर्ज पर ही झारखंड पुलिस ने भी अमन साहू का एनकाउंटर कर दिया। एनकाउंटर को लेकर सवाल भी उठाए जा रहे हैं, लेकिन लोग झारखंड पुलिस की पीठ भी थपथपा रहे हैं।
बता दें कि पुलिस ने कानपुर के बिकरू वाले विकास दुबे को 10 जुलाई साल 2020 को इसी तरह मुठभेड़ में मार गिराया था। विकास दुबे को उज्जैन से यूपी लाने के दौरान गाड़ी पलट गई थी।
पुलिस ने बताया था कि जिस वक्त एक्सीडेंट हुआ, उस समय गाड़ी की पिछली सीट पर बैठे विकास दुबे ने भागने की कोशिश की और एक पुलिसकर्मी की नाइन एमएम की पिस्टल लेकर भागते समय एसटीएफ के जवानों पर पलटकर गोली चलाई। इसके बाद एसटीएफ की जवाबी फायरिंग में तीन गोलियां उसके सीने में, जबकि एक बांह पर लगी। इसमें मौके पर ही उसकी मौत हो गई।अमन साहू के मामले में भी पुलिस ने बताया है कि वह एक जवान की इंसास रायफल छीनकर भागने और फायरिंग करने के बाद जवाबी फायरिंग में मारा गया। नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) की केरेडारी कोयला परियोजना के डीजीएम (डिस्पैच) कुमार गौरव की हत्या में गैंगस्टर अमन साहू गिरोह का हाथ है या नहीं, यह पुलिस जांच पूरी होने पर ही पता चलेगा, लेकिन कुमार गौरव की हत्या अमन के लिए काल बन गया। हत्या के बाद पुलिस की किरकिरी हो रही थी और वह भारी दबाव में थी।
नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने डीजीपी अनुराग गुप्ता को बेशर्म कहा था। अमन को मुठभेड़ में मार गिराने के बाद एक झटके में पुलिस दबाव से बाहर आ गई है। पुलिस की चहुंओर प्रशंसा हो रही है। साथी ही अमन के आतंक से भी लोगों को मुक्ति मिल गई है। अब उसके जैसे बेखौफ और बेलगाम दूसरे गैंगस्टर सकते में हैं।
डीजीपी अनुराग गुप्ता ने कहा है- अब विकास तिवारी, श्रीवास्तव गिरोह और धनबाद के प्रिंस खान पर विशेष नजर है। जानकारों का कहना है कि अगर 8 मार्च को डीजीएम कुमार गौरव की हत्या न हुई होती तो 11 मार्च को अमन का भी अंत न होता। डीजीएम की हत्या से एक दिन पहले रांची के बरियातू में कोयला ट्रांसपोर्टर बिपिन मिश्रा पर जानलेवा हमला हुआ।
केरेडारी कोयला परियोजना में ही बिपिन मिश्रा का ट्रांसपोर्टिंग का काम चल रहा था। कहा जाता है कि बिपिन का राज्य सरकार में अच्छी पैठ है। इस हमले में शामिल अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का पुलिस पर दबाव पड़ा। इस घटना के अगले दिन डीजीएम की हत्या ने पुलिस को अदालत से परे न्याय करने के लिए मजबूर कर दिया। आनन-फानन में छत्तीसगढ़ के रायपुर जेल से रांची कोर्ट में अमन की पेशी का प्लान बना और रायपुर से रांची लाने के दौरान यूपी के योगी राज की तरह पलामू के चैनपुर में मुठभेड़ हो गई।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी अनुसंधान फाउंडेशन नई दिल्ली के शोधकर्ता विनय सिंह कहते हैं- गैंगस्टर अमन साहू का खात्मा बेलगाम अपराधिओं के मनोबल को तोड़ेगा। डीजीपी अनुराग गुप्ता को अनंत शुभ कामनाएं और यह आग्रह भी है की यह क्रम रुकने न पाए।
आमतौर पर जब भी अपराधी हिरासत से पुलिस का हथियार छिनकर भागते हैं और मुठभेड़ होती है तो उसके बाद दिखावे के लिए ही सही, अपराधी को इलाज के लिए अस्पताल पहुंचाया जाता है। जहां डॉक्टर जांच के बाद मृत घोषित करते हैं। अमन के मामले में ऐसा नहीं हुआ। सुबह साढ़े नौ बजे मुठभेड़ होती है और जानवर की तरह करीब पांच बजे शाम तक सड़क पर शव पड़ा रहा।
इस दौरान एफएसएल की टीम जांच करती रही। शाम को शव को उठाकर पोस्टमार्टम के लिए मेदिनीनगर भेजा गया। एक तरह से यह पुलिस का गैंगस्टरों के लिए भी संदेश है। औरों का भी ऐसा ही हश्र होगा।
हर घटना के बाद अमन साहू गैंग की तरफ से इंटरनेट मीडिया में प्रेस विज्ञप्ति जारी की जाती थी। यह विज्ञप्ति-मयंक सिंह, अमन साहू के साथ है, एकाउंट से जारी की जाती थी। मंगलवार को मुठभेड़ में अमन के मारे जाने के बाद रात 12 बजे तक कोई विज्ञप्ति जारी नहीं हुई। अंतिम विज्ञप्ति 9 मार्च को डीजीएम कुमार गौरव के बाबत थी। हत्या में अमन गैंग ने अपना हाथ होने से इनकार किया था।
साथ ही हत्या करने वालों से खुद निपटने की भी बात कही गई थी।