प्रिय पाठकों एवं शुभेक्षुओं आप एवं आपके परिवार को होली की ढेर सारी शुभकामनाएं

रंगों के त्योहार होली से पहले होलिका दहन का मतलब है आग जलाना. यह नाम एक पुरानी कहानी से जुड़ा है. होलिका हिरण्यकश्यप की बहन थी और दहन का मतलब होता है जलना. कहानी के अनुसार, हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रह्लाद को मारना चाहता था और इसके लिए उसने अपनी बहन होलिका की मदद ली. होलिका को भगवान विष्णु ने एक विशेष कपड़ा दिया था जो उसे आग से बचा सकता था. होलिका ने प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठने की कोशिश की लेकिन भगवान के आशीर्वाद से प्रह्लाद बच गए. होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. होली मनाने के पीछे वैज्ञानिक कारण भी माना जाता है और कहा जाता है कि होली का त्योहार ऐसे समय में आता है जब मौसम ठंड से गर्मी में बदलता है और इस बदलाव के कारण लोगों को थकान और आलस्य महसूस होता है. इस थकान को दूर करने के लिए लोग ऊंची आवाज में गाते और बोलते हैं और इससे शरीर को नई ऊर्जा मिलती है और आलस्य दूर होता है.
होलिका दहन होली से पहले किया जाता है. होलिका दहन का महत्व अत्यधिक है और इसके अगले दिन रंग वाली होली खेली जाती है. होलिका दहन उत्तर भारत में व्यापक रूप से मनाया जाता है. होलिका दहन रात में किया जता है. होलिका दहन के लिए जगहें तय की जाती हैं. उस जगह पर झाड़ियों, लकड़ियों, गोबर और कई अन्य जलाने वाली सामग्री इकट्ठी की जाती है. युवा इन सामग्रियों को इकट्ठा करने के लिए अधिक उत्साहित होते हैं और होली के त्यौहार को और अधिक उत्साहित तरीके से मनाने की योजना बनाते हैं. किसान अपने खेतों और फसलों में अपना उत्साह दिखाते हैं.
होलिका दहन उत्सव के दौरान, लोग आग में उबटन फेंकते हैं जो एक प्रकार का पेस्ट होता है. ऐसा माना जाता है कि यह लोगों को साल भर रोग मुक्त रखता है और फिर होलिका की राख का उपयोग माथे पर तिलक लगाने के लिए किया जाता है और फिर निश्चित रूप से अगले दिन के भव्य समारोह की तैयारी की जाती है. ऐसा माना जाता है कि होलिका दहन की अग्नि नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करती है. होली एक ऐसा पर्व है जो लोगों को भेदभाव को भुलाकर प्रेम और सौहार्द्र को बढ़ावा देने का संदेश देती है.
होलिका दहन की परंपरा भक्त प्रह्लाद और उसके दुष्ट पिता राजा हिरण्यकशिपु से जुड़ी हुई है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, हिरण्यकशिपु भगवान विष्णु का कट्टर शत्रु था, जबकि उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु का अनन्य भक्त था. हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र को विष्णु की भक्ति से विमुख करने के लिए अनेक प्रयास किए, लेकिन जब वह असफल रहा, तो उसने अपनी बहन होलिका की सहायता ली. होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जल सकती. उसने प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश किया, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहा और होलिका जलकर भस्म हो गई. इसी घटना की स्मृति में प्रतिवर्ष होलिका दहन का आयोजन किया जाता है.
होलिका दहन होली के त्योहार से जुड़ा हुआ है और इसके आयोजन से बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश मिलता है. होलिका दहन की परंपरा न केवल धार्मिक है, बल्कि यह समाज को एकजुट करने और खुशी का अहसास दिलाने का एक अवसर भी है. इस दिन की रिवाजों और परंपराओं के साथ, लोग मानसिक और शारीरिक शुद्धता की प्राप्ति करते हैं, जिससे यह त्यौहार हर साल एक नई उम्मीद और उमंग के साथ मनाया जाता है. आपसे उम्मीद ही नहीं पूरा विश्वास भी है कि आप समाज में फैली कुरीतियों को होलिका दहन में भष्म कर अपने आसपास सुख, शांति एवं समृद्धि का रंग बिखेरेंगे।
एकबार फिर आपको और आपके परिवार को होली की ढेर सारी शुभकामनाएं।
रणधीर कुमार सिंह
प्रबंध संपादक

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