सड़कों पर भटक रहा बचपन, मुजरिम या नशेड़ी क्यों नहीं बनेगा?

नगरपरिषद उदाकिशुनगंज में मासूम बचपन सड़कों पर भीख मांगने के लिए भटक रहा है। जिस कारण इसे कैसे यकीनी बनाया जाए कि यह बचपन बड़ा होकर मुजरिम या नशेड़ी नहीं बनेगा? भीख मांगना एक धंधा बन चुका है, भले ही सरकार व प्रशासन इसकी पूरी तरह जिम्मेदार है, परंतु कोई भी अपनी जिम्मेदारी समझने के लिए तैयार नहीं। समय की जरूरत है कि इस मामले को बाल मजदूरी से भी पहले उठाया जाए। आम तौर पर देखा जाता है कि सार्वजनिक स्थानों पर मासूम बच्चे भीख मांगते दिखाई देते हैं। कोई शक नहीं कि भीख मांगना उन्होंने मां के पेट से नहीं सीखा और न ही उनके माता-पिता यह चाहते हैं, पर भीख मांगना भी उनके लिए धंधा बन चुका है, क्योंकि वह इसके लिए बकायदा समय पर घर से निकलते है और समय पर वापस लौटते हैं। जो भी कमाई होती है, उसे बकायदा तरीके से खर्च किया जाता है। आज के मजबूर बच्चे कल के मुजरिम ही बनेंगे, क्योंकि ये बड़े होकर पढ़े-लिखे न होने के कारण कोई अच्छा काम नहीं कर सकेंगे। जबकि भीख मांगना तब इनके लिए शर्मनाक होगा, इसलिए बड़ी संख्या में बच्चे बड़े होकर मुजरिम या नशेड़ी जरूर बन जाएंगे। छोटे बच्चे को तरस के आधार पर भीख देने का मतलब है कि उसे उत्साहित करना, इसलिए एक शहर से बच्चा अगवा कर दूसरे शहरों में भेजा जाता है। इसे भीख मांगने के धंधे में धकेल दिया जाता है, लेकिन आम तौर पर पुलिस गरीब माता-पिता के बच्चे कहकर कोई छानबीन भी नहीं करती। अगर छानबीन हो तो इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि कुछ बच्चे अगवा कर ही लाए गए मिलेंगे। बचपन में भीख मांगने वाले बड़े होकर मुजरिम और नशेड़ी बनते हैं। अधिकतर सुनने में आता है कि नौजवान खुद यह बात कहते हैं कि उनको कोई काम न मिलने के कारण ही वह जुर्म की दुनिया में दाखिल हो गए हैं, जहां से वापस लौटना असंभव है।

फोटो:-
भीख मांगने वाले बच्चों के बड़े होकर जुर्म करने की संभावना अधिक

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!