पूसा के शोधर्थियों ने किया शोध4’करक्यूमिन आयल’ होगा पेटेंट
फसलों में कीड़ों को पनपने से रोकता
अब मच्छर और मक्खी के कारण होने वाली बीमारियां प्रतिवर्ष देश में लाखों लोगों की बीमारी का कारण बनती हैं और इनसे फसल को भी नुकसान होता है।
इनसे बचाव के लिए बाजार में कई प्रकार के नुकसानदायक केमिकल से बने उत्पादों का प्रयोग करना पड़ता है,लेकिन अब इनकी जरूरत नहीं होगी। न ही दम घोंटने वाले क्वायल को जलाना पड़ेगा।
हल्दी के पत्तों से तैयार तेल इसका विकल्प बनने को तैयार है। पूरी तरह से प्राकृतिक इस तेल को बनाने में सफलता पाई है बिहार के समस्तीपुर जिले के पूसा स्थित डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने।
उन्होंने इसका नाम ‘करक्यूमिन आयल’ रखा है। बीजों के संरक्षण में भी यह उपयोगी है। वह उनके अंकुरण को प्रभावित नहीं करता है। अब इस तेल को पेटेंट कराने की तैयारी है।
कृषि विश्वविद्यालय द्वारा चलाए जा रहे मिशन कृषि अवशेष के तहत हल्दी के पत्ते से तेल निकालने पर अनुसंधान वर्ष 2019 में शुरू किया गया। सफल परिणाम के बाद इस तकनीक से किसानों को अवगत कराया जा रहा है।
डिपार्टमेंट आफ बाटनी, फिजियोलाजी एंड बायोकेमिस्ट्री के बायोकेमिस्ट्री विभाग के वरीय विज्ञानी डा. तैकुर मजाऊ के नेतृत्व में इस पर काम किया गया है।
विश्वविद्यालय में बीते फरवरी में आयोजित राष्ट्रीय किसान कृषि मेले में इसे विज्ञानी डा. किरण, प्रो. निधि व शोध छात्र यश कुमार ने किसानों के सामने प्रस्तुत कर उन्हें बनाने की विधि भी बताई थी।
शोध से जुड़ीं विज्ञानी डॉ. किरण बताती हैं कि हल्दी के पत्तों में करक्यूमिन रसायन पाया जाता है। यह इसे औषधीय गुण प्रदान करता है। प्रयोगशाला में पत्तों से तेल तैयार करने के लिए कई प्रक्रिया होती है।
पत्तों को पहले सुखाया जाता है। इसके बाद कूटकर आंशिक चूर्ण बनाकर पानी में डाला जाता है। इस मिश्रण से तेल निकालने के लिए डिस्टिलेशन फ्लास्क में करीब तीन घंटे तक गर्म किया जाता है।
100 से 120 डिग्री सेल्सियस तापमान पर गर्म करने पर उससे निकलने वाले वाष्प को आसवन के लिए दूसरे फ्लास्क से जोड़ते हैं।
वहां ठंडा होने पर पानी की ऊपरी सतह पर पीले रंग का एसेंशियल आयल आ जाता है। वहां सेपेरेटर तकनीक से तेल को अलग कर लिया जाता है। एक किलो पत्ते में एक से डेढ़ प्रतिशत तेल होता है।
डा. किरण के अनुसार, हल्दी के पत्ते का तेल अनाज भंडारण में कीट नियंत्रक के रूप में भी काम करता है। इसकी 10 से 12 बूंदें रूई में डालकर प्लास्टिक के डिब्बे में रख देते हैं। इसमें छोटे-छोटे छेद कर देते हैं। फिर उस डिब्बे को बीजों के बीच रख दिया जाता है।
तेल वाष्पित होकर बीजों में प्रभाव डालता है, इससे कीड़े नहीं पनपते हैं। मच्छर या मक्खियों से बचने के लिए पानी या केवल तेल को ही स्प्रे किया जा सकता है। इसका उपयोग घरों में भी मच्छरों को भगाने में किया जा सकता है।
समस्तीपुर के प्रगतिशील किसान रामजी प्रसाद कहते हैं कि उत्तर बिहार में हल्दी की बड़े पैमाने पर खेती होती है। समस्तीपुर प्रमुख उत्पादक जिला है। यहां करीब पांच हजार हेक्टेयर में इसकी खेती होती है।
इसी के चलते ‘वन डिस्ट्रिक्ट-वन प्रोडक्ट’ के तहत समस्तीपुर के लिए हल्दी का चयनित है। पहले हल्दी के पत्ते खेत में ही सड़ जाते थे। कुछ किसान तो जला देते थे, लेकिन तेल निकालने की विधि जानकर पत्ते का भी उपयोग किया जा सकेगा।