इस बार करीब 4000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में महाकुंभ मेले में जानिए क्या है खास। महाकुंभ में धर्म, अध्यात्म, संस्कृतियों का संगम। कलियुग में स्वर्ग को देखना हो तो नए साल में महाकुम्भ के अवसर पर तीर्थराज प्रयागराज जरूर आऐं।
महाकुम्भ का मेला दुनिया का सबसे बड़ा आयोजन है जिसमें श्रद्धालुओं की भीड़ को अन्तिरक्ष से भी देखा जा सकता है, महाकुम्भ मेले का हर कोना अपने आप में अनोखा है।
- महाकुंभ 2025 में दुनियाभर से 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के शामिल होने की उम्मीद है।
- नागा संन्यासियों का जप-तप आकर्षण का केंद्र रहेगा, उनका धर्म के प्रति समर्पण कौतुहल बढ़ाएगा।
- किन्नर संन्यासी भी महाकुंभ का हिस्सा बनकर भजन-पूजन करेंगे। उनका दर्शन व आशीर्वाद लेने के लिए भीड़ जुटेगी।
- दंडी संन्यासियों की तपस्या, वैष्णव संतों का त्याग, अखाड़ों के महामंडलेश्वरों का वैभव, योगी संतों का योग भी प्रयागराज के महाकुम्भ में आकर्षण का केन्द्र बनेगा।
- कल्पवासियों की साधना अद्भुत होती है। संगम की रेती में धूनी रमाकर गृहस्थ समर्पित भाव से संतों के सानिध्य में भजन-पूजन करते हैं।
- 13 अखाड़े वैभव बढ़ाएंगे। इन अखाड़ों के 15 लाख से अधिक संत मेला क्षेत्र में प्रवास कर जप-तप में लीन रहेंगे।
- श्रद्धालुओं को यमुना तट पर किले के अंदर स्थित प्राचीन अक्षयवट वृक्ष के दर्शन का सौभाग्य मिलेगा। कॉरिडोर बनाकर उसे भव्यता दी गई है।
- मंदिर में कॉरिडोर के कारण बांध स्थित लेटे हनुमान जी का दर्शन-पूजन करने में श्रद्धालुओं को समस्या नहीं आएगी।
- तीर्थराज प्रयाग को बसाने वाले महर्षि भरद्वाज का आश्रम भी लुभाएगा, भरद्वाज आश्रम कारिडोर में प्राचीनता के साथ आधुनिकता की अनुभूति होगी।
- तीर्थराज प्रयाग माधव की नगरी है, इसे देखते हुए द्वादश माधव मंदिरों का जीर्णाेद्धार कराया गया है, द्वादश माधव के दर्शन-पूजन का विशेष प्रबंध किया गया है।
- महाकुम्भ में आने वाले श्रद्धालुओं को इन विशेष तिथियों को नोट करना चाहिए, ताकि प्रमुख स्नान पर्वों के बारे में उन्हें पता रहे। महाकुम्भ मेला 2025 के मुख्य स्नान पर्वों एवं शाही स्नान की तिथियां, पौष पूर्णिमा – 13.01.2025, सोमवार, मकर संक्रांति – 14.01.2025, मंगलवार (शाही स्नान), मौनी अमावस्या – 29.01.2025, बुधवार (शाही स्नान), बसंत पंचमी – 03.02.2025, सोमवार (शाही स्नान), माघी पूर्णिमा – 12.02.2025, बुधवार, महाशिवरात्रि – 26.02.2025, बुधवार। पुण्य लाभ, दान-पुण्य अर्जन के लिए महाकुम्भ के दौरान इन तिथियों पर प्रयागराज में दूर-दराज से आए श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ता है, महाकुम्भ के लोगो पर टैगलाइन अंकित है, सर्वसिद्धिप्रदः कुम्भः।
- कुंभ का वर्णन वेद-पुराणों में भी मिलता है। जिसमें वर्णित कथा के अनुसार कुंभ मेले का संबंध समुद्र मंथन से माना गया है। कहा जाता है कि महाकुंभ के दौरान गंगा नदी में स्नान करने से व्यक्ति को अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। जहां कुंभ मेले का आयोजन 12 साल में होता है वहीं महाकुंभ 12 कुंभ मेले के बाद यानी 144 साल में लगता है।
- कुंभ की पौराणिक कथा (Maha kumbh katha)
- पौराणिक कथा के मुताबिक, अमृत पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन किया गया। इस मंथन के दौरान कई तरह के रत्न उत्पन्न हुए, जिन्हें देवताओं और असुरों ने बांट लिया। समुद्र मंथन के आखिर में भगवान धन्वंतरि अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए। अमृत पाने की लालसा में देवताओं और असुरों में युद्ध छिड़ गया। इस छीना-झपती में अमृत की कुछ बूंदें धरती के 4 स्थानों, प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिर गईं। माना जाता है कि तभी से इन चार स्थानों पर हर 12 साल के अंतराल में कुंभ का आयोजन होता है।
- अलग-अलग हैं मान्यताएं (Kumbh Mela history)
- पहली बार कुंभ का आयोजन कब हुआ, इसे लेकर कोई सटीक प्रमाण नहीं मिलता। प्रथम कुंभ आयोजन की तारीख को लेकर अलग-अलग मत हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार, 7वीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के काल में चीनी तीर्थयात्री ह्वेनसांग ने अपने एक यात्रा विवरण में कुंभ का वर्णन किया है।इस यात्रा विवरण में उन्होंने प्रयागराज के कुंभ महोत्सव के दौरान संगम पर स्नान का उल्लेख करते हुए इसे पवित्र हिंदू तीर्थस्थल बताया है। वहीं कुछ लोगों का यह भी मानना है कि 8वीं शताब्दी में भारतीय गुरु तथा दार्शनिक आदि शंकराचार्य जी और उनके शिष्य सुरेश्वराचार्य ने दसनामी संन्यासी अखाड़ों के लिए संगम तट पर स्नान की व्यवस्था की थी।
- Kumbh Mela 2025: कुंभ मेला, भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं का अद्वितीय पर्व है, जिसका इतिहास हजारों साल पुराना है। यह पर्व विशेष रूप से प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ के रूप में विश्वभर में प्रसिद्ध है, जहां हर बारह साल में विशेष ज्योतिषीय संयोगों के आधार पर लाखों श्रद्धालु संगम में स्नान करने आते यात्री ह्वेन त्सांग ने प्रयागराज के महाकुंभ का वर्णन किया, जो उस समय के धार्मिक आयोजन और सम्राट की दानशीलता को प्रदर्शित करता है। कुंभ मेला न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह भारतीय समाज के सामूहिक आस्था, संघर्ष और एकता की अभिव्यक्ति भी है, जो हर बार इस अद्वितीय पर्व के माध्यम से पुनः जीवित होती है।
नागा साधुओं की पेशवाई
महाकुंभ में नागा साधुओं की पेशवाई एक प्रमुख आकर्षण होती है, जो न केवल धार्मिक आस्था, बल्कि भारतीय वीरता और संघर्ष का प्रतीक है। इन साधुओं ने ऐतिहासिक रूप से सनातन धर्म की रक्षा के लिए कई आक्रमणों का सामना किया, जिनमें १७वीं शताब्दी का अफगान आक्रमण प्रमुख था। नागा साधुओं ने सनातन के लिए मुगलों ही नहीं अंग्रेजों से भी लोहा लिया। नागा साधुओं की वीरता और समर्पण की गाथा “नगर प्रवेश” की परंपरा के रूप में आज भी हर महाकुंभ का हिस्सा है, जो भारतीय समाज की गौरवपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है। - भारत देश के नामकरण में धर्म और अध्यात्म का मूल आधार रहा है जैसे सूर्य के चारों ओर ग्रह, नक्षत्र, घूम रहे हैं जिसे एक ब्रह्माण्ड कहते हैं उसी प्रकार उस अनन्त शक्ति, परमात्मा के चारों ओर अनेक ब्रह्माण्ड चक्कर लगा रहे हैं, उसमें भारत का स्थान उस अनन्त शक्ति के ठीक सामने पड़ता है। यों तो ईश्वरीय रूपी अनन्त शक्ति का प्रकाश सभी स्थानों पर पड़ता है पर इस देश पर प्रकाश सीधे आता है इसलिए यह देश संतों की भूमि, धर्म, कर्म प्रधान है। ऋषि-महर्षियों ने धर्म के रूप में इसी तत्व को प्रमाणित किया है और इस देश को धर्म प्रधान देश कहा है, यह धर्म सम्प्रदाय का धर्म नहीं, भगवान का वह प्रकाश है जिसे पाकर कोई भी व्यक्ति, जाति या देश धन्य हो जाता है। यह प्रकाश पैदा नहीं किया जाता स्वाभाविक ही होता है, यह यहां का जन्मजात धर्म है, प्रकाश है, इसलिए भारत महान है।
- साहित्य में भारत का अर्थ भा (प्रकाश) + रत होता है। पौराणिक संदर्भ में भारत देश के नामकरण का श्रेय कुरुवंशी राजा दुष्यंत के पुत्र तथा ऋषि विश्वामित्र के नाती सम्राट भरत को दिया जाता है। समानान्तर जैन साहित्य में भारत के नामकरण का श्रेय प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत को दिया जाता है। इतिहास में भरत नाम के दो अन्य विख्यात राजा भी हुए हैं, इनमें से एक राजा भगवान राम के पूर्वज थे
- तो दूसरे राजा स्वयं राम के भाई भरत थे। राम के पूर्वज का नाम महाबाहु शत्रुसूदन भरत था (वाल्मीकि रामायण) और राम के भाई भरत को चौदह वर्षों के लिए राजा बनाया गया था। भारत का एक नाम हिंद भी विश्व प्रसिद्ध है जो सिंधु (सागर अथवा नदी) शब्द से निकला है। देश प्रेम, देश सेवा के अनेक पहलू हैं। मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम जब लक्ष्मण सहित लंका में युद्ध के लिए प्रवेश करते हैं तो अनायास उनके मुख से निकलता है,अर्थात् हे लक्ष्मण! यह स्वर्ण की नगरी लंका मुझे रुचिकर प्रतीत नहीं होती, अपनी जननी जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान होती है। कलियुग में स्वर्ग को देखना हो तो नए साल में महाकुम्भ के अवसर पर तीर्थराज प्रयागराज जरूर आऐं।

