झारखंड फार्मेसी काउंसिल के रजिस्ट्रार की नियुक्ति पर उठे सवाल


झारखंड राज्य फार्मेसी काउंसिल के रजिस्ट्रार-कम-सदस्य सचिव के रूप में श्री प्रशांत कुमार पांडेय, पिता श्री यू.एस. पांडेय, की नियुक्ति ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। श्री पांडेय, जो झारखंड राज्य फार्मेसी काउंसिल में पंजीकरण संख्या 00083 के तहत 2005 से अब तक है, Tribunal Reg. No. 20564/JH/83 पंजीकृत हैं, पर बिहार में भी फार्मासिस्ट के रूप में पंजीकरण कराने का आरोप है। हमारे रिपोर्टर ने बिहार राज्य औषधि नियंत्रण निदेशालय (Directorate of Drugs Control, Bihar State) में उनकी पंजीकरण संख्या 20670 की पुष्टि की, जिसमें यह पंजीकरण श्री प्रशांत कुमार पांडेय के नाम पर दर्ज पाया गया। यह पंजीकरण 08/04/2005 से अब तक वैध है।
नियमों के अनुसार, एक फार्मासिस्ट केवल एक राज्य में ही पंजीकरण कर सकता है और इसके लिए यह शपथ पत्र देना होता है कि वह किसी अन्य राज्य में पंजीकृत नहीं है। दो राज्यों में पंजीकरण कराना शपथ पत्र और नियमों के उल्लंघन की ओर संकेत करता है।
लाइसेंस के दुरुपयोग के गंभीर आरोप
जांच में यह भी खुलासा हुआ है कि श्री पांडेय ने अपने फार्मासिस्ट लाइसेंस को झारखंड में ही चार अलग-अलग स्थानों पर एक ही आधार कार्ड का उपयोग करके किराए पर दिया। यह उनकी पहचान और दस्तावेज़ों के साथ छेड़छाड़ और संभावित दुरुपयोग को दर्शाता है।
काउंसिल के अध्यक्ष का समर्थन और अन्य विवाद
झारखंड राज्य फार्मेसी काउंसिल के अध्यक्ष श्री अनिल प्रसाद सिंह ने नव-नियुक्त रजिस्ट्रार श्री पांडेय को अपना पूर्ण समर्थन दिया है। श्री सिंह ने श्री पांडेय के खिलाफ की गई शिकायतों की कोई जांच नहीं की।
इसके अलावा, श्री सिंह द्वारा जमशेदपुर में बुद्धा कॉलेज ऑफ नर्सिंग नामक एक निजी नर्सिंग कॉलेज खोले जाने की भी जानकारी सामने आई है, जहां वे चेयरमैन के रूप में कार्यरत हैं। आरोप है कि उन्होंने सरकार को अंधेरे में रखकर यह कॉलेज खोला और सिफारिश समिति से अपना नाम छिपाकर नर्सिंग कॉलेज के लिए राज्य सरकार से एनओसी और मान्यता प्राप्त की। क्या यह संभव है कि एक व्यक्ति दो स्थानों पर अध्यक्ष हो सकता है जबकि वह एक राज्य की सेवा करता है, अपने निजी हित के लिए नर्सिंग कॉलेज का अध्यक्ष बन सकता है?

नया सनसनीखेज मामला
झारखंड फार्मेसी काउंसिल के रजिस्ट्रार के खिलाफ एक और नया सनसनीखेज मामला सामने आया है। श्री पांडेय पर आरोप है कि वे भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हुए सिस्टम को अपने हिसाब से इस्तेमाल कर रहे हैं। उनके सामने सरकारी अधिकारियों ने भी अब तक घुटने टेक दिए हैं। उनकी जांच की फाइल विभाग में कछुए की तरह रेंग रही है, जिससे स्पष्ट है कि इस मामले में पारदर्शिता और त्वरित कार्रवाई का घोर अभाव है।
क्या यह उचित है?
एक ऐसा व्यक्ति जो पहले से ही भ्रष्टाचार में लिप्त रहा हो, उसे स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े एक महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त करना कितना उचित है? स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के भविष्य से जुड़ी इस जिम्मेदारी को ऐसे व्यक्ति को सौंपना राज्य की जनता के स्वास्थ्य और प्रशासनिक पारदर्शिता के लिए एक बड़ा खतरा बन सकता है। सरकार को गुमराह करने के आरोप
श्री सिंह पहले से ही सरकार को गुमराह करते आ रहे हैं। फार्मेसी के नियमों को तोड़-मरोड़ कर वे अपने निजी फायदे के लिए सरकार के सामने पेश करते हैं। यह गंभीर मुद्दा है कि एक सरकारी पदाधिकारी कैसे निजी और सरकारी दोनों क्षेत्रों में अपने स्वार्थ के लिए नियमों का उल्लंघन कर सकता है।
जवाबदेही की मांग
इन आरोपों को देखते हुए वरदान न्यूज़ सरकार से अपील करता है कि इस मामले की गहन जांच की जाए और उठाए गए सवालों का समाधान किया जाए। झारखंड राज्य फार्मेसी काउंसिल में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
अब यह देखना बाकी है कि संबंधित अधिकारी निर्णायक कार्रवाई करते हैं या बढ़ते सबूतों की अनदेखी जारी रखते हैं।

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