मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगरलोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया

मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगरलोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया। उक्त शेर बिहार राज्य के मधेपुरा जिले के चौसा प्रखंड निवासी सामाजिक कार्यकर्त्ता संजय कुमार सुमन पर सटीक ही बैठता है। वे पिछले 32 सालों से नि:स्वार्थ सेवा और करुणा का एक अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। उनका जीवन समाज के सबसे वंचित वर्गों, बेसहारा जीवों और ज़रूरतमंदों की मदद के लिए समर्पित है।जीवन में सफलता प्राप्ति के लिए लक्ष्य का निर्धारण और लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जोश, जुनून का होना बहुत जरूरी होता है। कठोर, मेहनत, परिश्रम और जुनून के साथ किए जाने वाले कार्य का परिणाम भी सकारात्मक रहता है। ऐसा ही कर दिखाया है समाजसेवी सह साहित्यकार संजय कुमार सुमन ने। धरती को हरा-भरा बनाना और भविष्य को सुरक्षित बनाना ही उनके जीवन का अध्याय बना हुआ है। परिवार, समाज, कार्यक्षेत्र और जीवन की अनेक मुश्किलों और संघर्षों के बावजूद ये न डिके हैं और ना ही लक्ष्य से विचलित हुए हैं। यह न केवल वर्षों से पौधारोपण कर रहे हैं, बल्कि पौधों की देखभाल बच्चों की तरह कर उनको बढ़ाने में भी जुटे हुए हैं। इनकी ओर से लगाए गए पौधे अब घने वृक्ष व सघन वन का रूप ले चुके हैं। वर्षों से पौधारोपण एवं उनकी देखभाल उनके जीवन का अभिन्न अंग बना हुआ है। श्री सुमन पर्यावरण संरक्षण के लिए लगातार काम कर रहे हैं। उनका यह जुनून केवल बातों तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके कार्यों में स्पष्ट झलकता है। अब तक 5000 से अधिक पौधे लगाए हैं, जिससे न केवल हरियाली बढ़ी है बल्कि पर्यावरण संतुलन में भी महत्वपूर्ण योगदान मिला है। लोग इनके प्रकृति प्रेम से प्रेरणा भी ले रहे हैं।उनका सेवाभाव केवल मनुष्यों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वे पशु-पक्षियों के प्रति भी गहरी करुणा रखते हैं।श्री सुमन ब्लड कैंप का आयोजन भी किया है, और अस्पतालों में ज़रूरत पड़ने पर मरीज़ों के लिए रक्त की व्यवस्था भी करते हैं और स्वयं रक्तदान भी करते हैं। कोविड-19 जैसी महामारी के दौरान भी उन्होंने स्लम क्षेत्रों में मास्क, साबुन, हैंड सैनिटाइज़र का वितरण किया, जिससे संकटग्रस्त लोगों को बड़ी राहत मिली। ठंड के दिनों में समाज के लोगों के बीच जाकर कंबल एवं चादर का लगातार वितरण कर रहे हैं। समय-समय पर गंदी एवं कूड़े कचरे से भरे सड़क पर सफाई अभियान भी चलाया है और चलाते रहें हैं। यह कार्य उनके अदम्य साहस और मानवता के प्रति गहरे प्रेम को दर्शाता है। उनके निस्वार्थ कार्यों के लिए सौ से अधिक समाज सेवा अवार्ड्स से सम्मानित किया जा चुका है, जो उनके व्यापक प्रभाव और जनसेवा के प्रति अटूट प्रतिबद्धता का प्रमाण है। वे समाज के सबसे कमज़ोर वर्गों के लिए एक मजबूत सहारा बन गए हैं। इनका जीवन, उनका समर्पण और समाज के प्रति उनका सेवा भाव यह साबित करता है कि एक व्यक्ति भी अपनी लगन और दूसरों की मदद करने के जज़्बे से कितना बड़ा और सकारात्मक बदलाव ला सकता है। वे सही मायने में आज के युवाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं। संजय कुमार सुमन का जीवन यह दर्शाता है कि कैसे एक व्यक्ति, अपने समर्पण, करुणा और निरंतर प्रयासों से, समाज के हर वर्ग में उम्मीद की किरण जगा सकता है। उनका कार्य हमें सिखाता है कि सच्ची सेवा में कोई सीमा नहीं होती, और हर जीव के प्रति हमारा कर्तव्य है।श्री सुमन एक सम्मानित और श्रेष्ठ शिक्षक, एक कुशल प्रशासक और एक समर्पित समाज सेवक हैं। उनका जीवन ज्ञान की अथाह गहराई, प्रकृति के प्रति प्रेम और समाज के प्रति अटूट प्रतिबद्धता का एक ज्वलंत उदाहरण है। ये एक शिक्षक ही नहीं बल्कि एक युवा वक्ता, लेखक, कवि, मोटिवेशनल स्पीकर और समर्पित समाज सेवक भी है। कला, संस्कृति और साहित्य के प्रति उनका गहरा लगाव है, और वे इन क्षेत्रों का उपयोग समाज सेवा के लिए करते हैं। अपनी विजनरी सोच के माध्यम से, वे समाज में परिवर्तनशील दृष्टिकोण रखते हैं और ग्रामीण बच्चों को शिक्षा के प्रति हमेशा जागरूक करते रहते हैं। इनकी कहानी एक ऐसी प्रेरणा है जो यह सिखाती है कि शिक्षा और दृढ़ संकल्प के साथ, एक व्यक्ति कैसे समाज में बड़े पैमाने पर बदलाव ला सकता है। उनका जीवन वंचितों की सेवा और युवाओं को सही मार्ग दिखाने के लिए एक ‘प्रकाश स्तंभ’ के समान है, जो अनगिनत लोगों को बेहतर भविष्य की ओर प्रेरित कर रहा है।

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