ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि पर श्रद्धा, आस्था और सतीत्व की प्रतीक वट सावित्री व्रत का पर्व पूरे बिहार में बड़े ही धार्मिक उल्लास और पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ मनाया गया। राज्य के पटना, गया, जहानाबाद, कटिहार और मधुबनी जिलों में वट वृक्षों के नीचे सुबह से ही सुहागिन महिलाओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी, जिन्होंने पारंपरिक वस्त्रों में सोलह श्रृंगार के साथ पूजा-अर्चना की और पति की लंबी उम्र तथा सुख-समृद्धि की कामना की।
जहानाबाद जिले के शहरी और ग्रामीण इलाकों में वट सावित्री व्रत की अद्भुत छटा देखने को मिली। महिलाएं लाल साड़ी, सिंदूर, चूड़ी और गहनों से सजी-धजी बट वृक्ष के नीचे एकत्रित हुईं और पूजन, परिक्रमा तथा उपवास के साथ इस पर्व को पूर्ण श्रद्धा से मनाया। व्रत में सहभागी महिलाओं ने बताया कि यह पर्व उनके पति की दीघार्यु, आरोग्यता और अखंड सौभाग्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। पंडितों के अनुसार, यह पर्व ज्येष्ठ अमावस्या को मनाया जाता है और इसे देवी सावित्री की तपस्या और निष्ठा का प्रतीक माना जाता है।
कटिहार जिले में भी वट सावित्री पूजा को लेकर व्यापक उत्साह देखा गया। महिलाएं भोर से ही तैयार होकर पूजा की थालियों में फल, फूल, सिंदूर, पूड़ी और पकवान सजाकर वट वृक्ष के नीचे पहुंचीं। वहां सावित्री-सत्यवान की कथा का पाठ हुआ और महिलाओं ने बांस की डलियों में सामग्री अर्पित कर वृक्ष की परिक्रमा की। पूरे वातावरण में श्रद्धा, आस्था और उत्साह की अनूठी छवि देखने को मिली। यह पर्व महिलाओं की निष्ठा, समर्पण और सांस्कृतिक चेतना का प्रतिबिंब बनकर सामने आया।
मिथिलांचल के मधुबनी जिले में यह पर्व विशेष उत्साह के साथ मनाया गया, जहां नवविवाहिताओं में इस व्रत को लेकर विशेष आकर्षण देखा गया। महिलाएं निखंड वस्त्र धारण कर, केल के पत्तों पर प्रसाद सजाकर, बांस से बने पंखे से वट वृक्ष को हवा देती हुईं, सावित्री के पतिव्रत धर्म की गाथा गुनगुना रही थीं। वट वृक्ष को ब्रह्मा, विष्णु और शिव का प्रतीक मानकर पूजा की गई।
साथ ही महिलाएं वृक्ष से गले मिलतीं, कच्चे सूत से परिक्रमा करतीं और रक्षासूत्र बांधकर प्रार्थना करतीं दिखीं। पूजा के बाद सूर्यास्त से पहले व्रती महिलाएं बिना नमक का भोजन कर व्रत को पूर्ण करती हैं।