फिल्मों की शूटिंग के लिए पसंदीदा जगह बन रहा बिहार

राज्य सरकार की नई फिल्म नीति लायी रंग

जहानाबाद के काको में स्थापित किया गया स्टूडियो
डॉक्यूमेंट्री और शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल का भी होगा आयोजन

बिहार में अब सिर्फ खेत-खलिहान, शिक्षा और इतिहास की चर्चा नहीं होती, अब यहां फिल्मों की शूटिंग की भी गूंज सुनाई देती है। लाइट, कैमरा, एक्शन जैसे शब्द अब मुंबई या हैदराबाद तक सीमित नहीं हैं, बल्कि बिहार के अलग-अलग शहरों और गांवों में भी इनकी गूंज सुनाई देने लगी है। राज्य सरकार की नई फिल्म नीति के बाद बिहार तेजी से फिल्मों की शूटिंग के लिए पसंदीदा जगह बनता जा रहा है।
इस समय राज्य में कुल 14 फिल्मों को शूटिंग की अनुमति मिल चुकी है। इनमें से कई फिल्मों की शूटिंग पूरी हो चुकी है और कुछ पर अभी काम चल रहा है। ये फिल्में भोजपुरी, हिंदी, मैथिली, मगही और अंग्रेजी जैसी अलग-अलग भाषाओं में बन रही हैं। इससे न केवल बिहार की छवि एक रचनात्मक प्रदेश के रूप में बन रही है, बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार और राज्य को पर्यटन के रूप में भी लाभ मिल रहा है।
बिहार अब स्थायी फिल्म निर्माण के ढांचे भी विकसित कर रहा है। वाल्मीकि नगर में राज्य का पहला फिल्म सेट बनाया जा रहा है, जहां पर ‘टिया’ नाम की हिंदी फिल्म की शूटिंग चल रही है। इसके अलावा जहानाबाद जिले के काको स्थित पाली में अभिनेता और निर्देशक हैदर काजमी द्वारा एक स्टूडियो स्थापित किया गया है। यहां भी लगातार फिल्मों की शूटिंग हो रही है।अभी हाल ही में बॉलीवुड अभिनेता पंकज त्रिपाठी की फिल्म ‘ओह माय डॉग’, जिसे बाद में सेनापति के नाम से भी जाना गया, की शूटिंग पटना के अलग-अलग स्थानों पर पूरी की गई है। इस फिल्म की निमार्ता कंपनी जार पिक्चर एलएलपी ने बिहार फिल्म निगम का विशेष रूप से आभार जताया है।
बिहार सरकार केवल फिल्मों की शूटिंग की अनुमति ही नहीं दे रही, बल्कि राज्य में फिल्म शिक्षा को भी बढ़ावा दे रही है।
हाल ही में बिहार दिवस के मौके पर आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय में प्रसिद्ध अभिनय प्रशिक्षक हेमंत माहौर ने मास्टर क्लास ली, जिसमें बड़ी संख्या में युवाओं ने हिस्सा लिया। इसके अलावा पुणे फिल्म संस्थान, सत्यजीत रे फिल्म संस्थान और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में पढ़ने वाले बिहार के छात्रों को छात्रवृत्ति देने की योजना भी शुरू की गई है। अब तक आशीष कुमार नामक एक छात्र को यह सहायता दी जा चुकी है और बाकी आवेदनों पर काम चल रहा है।
फिल्म निमार्ताओं को आकर्षित करने के लिए बिहार सरकार ने आर्थिक सहायता देने की भी पहल की है। अगर कोई फिल्म अपनी कुल शूटिंग का 75 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा बिहार में करती है, तो उसे चार करोड़ रुपये तक की सरकारी मदद मिल सकती है। इस योजना का लाभ उठाने के लिए कई फिल्म निमार्ता बिहार की ओर रुख कर रहे हैं।
बहुत जल्द ही बिहार में डॉक्यूमेंट्री और शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल भी आयोजित किया जाएगा। इसमें कुछ फिल्मों का चयन हो चुका है और बाकी का चयन जल्द पूरा हो जाएगा। बिहार में जिन फिल्मों को शूटिंग की अनुमति मिली है, उनमें से कुछ प्रमुख नाम हैं। जैसे संघतिया, द लांग जर्नी होम, बिहार का जलवा, सुहागिन के सेनू, लाइफ लीला, जिनगी बीतवनी तोहरे प्यार में, नारी, टिया, ओह माय डॉग/सेनापति, रजनी की बारात, छठ और पेन ब्रश।

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