“दिवरा बाजार में धड़ल्ले से बिक रही खतरनाक थाई मांगुर — जिम्मेदार कौन?”

“क्यों है थाई मांगुर बैन — और फिर भी बाज़ार में क्यों बिक रही है?”

✅ थाई मांगुर पर क्यों लगाई गई है रोक

थाई मांगुर (वैज्ञानिक नाम Clarias gariepinus) पर भारत में पाले-जाने और बेचने पर प्रतिबंध 2000 में लग गया था।

इसका कारण — ये मछली बहुत आक्रामक होती है: यह तालाब या जलाशय की अन्य स्थानीय मछलियों को शिकार कर डालती है। इस कारण वहाँ की जलीय विविधता प्रभावित होती है।

इसके साथ, थाई मांगुर को अक्सर दूषित या अस्वच्छ जल में पाला जाता है, जिससे उसे खतरनाक रसायन/धातु (जैसे लेड, अन्य प्रदूषक) मिल सकते हैं — जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं।

कई स्वास्थ्य विशेषज्ञों और रिपोर्टों के अनुसार, इसका सेवन करने से कैंसर और अन्य गंभीर रोगों का खतरा बताया गया है।

🚨 फिर भी बाज़ारों में बिक क्यों रही है — और सरकार कार्रवाई क्यों धीमी है?

थाई मांगुर बहुत सस्ती होती है — इस कारण गरीब तबके इसे सस्ता और जल्दी मिलने वाला “प्रोटीन स्रोत” समझकर खरीदते हैं।

नीतियाँ और प्रतिबंध होने के बावजूद, कई व्यापारी और खेतिहर लोग अवैध तरीके से इसे पालते या बेचते हैं क्योंकि मुनाफा ज्‍यादा है और पकड़-झकड़ कम है।

कई बार स्थानीय प्रशासन, मत्स्य विभाग या पुलिस की नजर नहीं जाती — या उन्हें मछली की पहचान करना मुश्किल हो जाता है।

यानी कि नियम तो हैं, पर प्रवर्तन (enforcement) मजबूत नहीं — यही वजह है कि प्रतिबंधित मछली आज भी खुले बाजारों में बिकती

इसके खाने से किसने और कैसे प्रभावित हो सकते हैं?

जो लोग नियमित रूप से थाई मांगुर खाते हैं, विशेषकर गरीब या कम जानकारी वाले — उनका स्वास्थ्य खतरे में हो सकता है।

बच्चों, बुज़ुर्गों या गर्भवती महिलाओं में — भारी धातुओं या रसायनों के कारण जोखिम और भी बढ़ सकता है।

साथ ही, यदि यह मछली स्थानीय जल-जीवों और पारिस्थितिकी को नष्ट कर रही है, तो आने वाले समय में हमारी स्थानीय मछली (जो पौष्टिक होती हैं) दुर्लभ हो सकती हैं — जिससे लोगों की डाइट और जीविकोपार्जन पर असर पड़ेगा।

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