न कोई बचा लालटेन जलाने वाला और न ही कोई हाथ मिलाने वाला

प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने का दावा करने वाला महागठबंधन अंग क्षेत्र, कोसी और सीमांचल में एनडीए से बुरी तरह पराजित हुआ है। आलम यह कि इन क्षेत्रों में आने वाले 13 जिलों में छह पर न कोई लालटेन जलाने वाला बचा, न कोई हाथ मिलाने वाला।
यहां विधानसभा की 62 सीटों में महज नौ पर महागठबंधन को जीत मिली। छह दलों को कुनबे में समेटे महागठबंधन को अकेले लड़ रहे एआइएमआइएम से महज एक सीट ज्यादा मिली है। गोप की धरती कहे जाने वाले मधेपुरा में बमुश्किल एक सीट पर जीत नसीब हुई। भागलपुर, बांका, मुंगेर, लखीसराय, खगड़िया, सुपौल, पूर्णिया में सूपड़ा साफ।
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी सीमांचल में दखल रखती है। उनकी पार्टी ने महागठबंधन से छह सीटें मांगी थीं। लालू और तेजस्वी ने साफ मना कर दिया। नतीजा, ओवैसी की पार्टी का तो कुछ नहीं बिगड़ा। महागठबंधन को आधा दर्जन से अधिक सीटों पर मुस्लिम वोटों के बंटने का नुकसान हुआ। एआइएमआइएम ने 2020 के विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी इस क्षेत्र में पांच सीट जीत कर बता दिया कि महागठबंधन का हठ आत्मघाती साबित हुआ।
कहलगांव, सुल्तानगंज, बेलदौर, सिकंदरा की सीट पर महागठबंधन खुद ही आपस में लड़ रहा था। आपसी लड़ाई का नुकसान यह हुआ कि ये चारों सीटें महागठबंधन ने एनडीए को तोहफे में दे दी। इन सीटों पर महागठबंधन के वोटर तय ही नहीं कर पाए कि किसके साथ जाएं। कुछ इधर बंटे, कुछ उधर। नतीजा, कट गए। वैसे तो पूरे बिहार में महिलाओं ने पुरुषों से अधिक वोट दिए, लेकिन इस इलाके में तो लहर थी। सीमांचल के किशनगंज में 19 प्रतिशत तो कोसी के मधेपुरा जिले में पुरुषों से 15 प्रतिशत अधिक महिलाओं ने मतदान किए। दस हजार के उपहार के बदले महिलाओं ने रिटर्न गिफ्ट के तौर पर एनडीए की झोली वोटों से भर दी। यहां की 62 सीटों में 48 पर एनडीए को जीत दिलाकर मतदाताओं ने स्पष्ट किया कि उन्हें नीतीश-मोदी की जोड़ी पर भरोसा है।
वह सुशासन की सरकार के साथ हैं। जंगलराज और घुसपैठ के एनडीए के मुद्दे उन्हें भाए।

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