अभी के दौर में लालू परिवार का जलवा
पासवान और मांझी परिवार भी पीछे नहीं
पटना। बिहार की सियासत में वंशवाद कोई नई बात नहीं है। मौका मिलते ही नेता अपनी विरासत संतान को सौंपने के लिए बेताब दिखते हैं। कुछ क्षेत्रीय दल तो परिवार की पार्टी बन गए हैं। इसमें जिसमें बेटा-बेटी, भांजा-भांजी और भाई-भतीजा के साथ समधी-समधिन के लिए भी जगह सुरक्षित रहती है। इसके बाद जगह बचती है, तो कार्यकर्ता स्थान पाते हैं।
पार्टियों में परिवार को सबसे अधिक प्रमुखता मिलती है। इस बार भी बिहार चुनाव में ”फैमिली फर्स्ट” जैसा नजारा है। इसमें कोई भी पार्टी अछूती नहीं है। कमोवेश पार्टियों ने नेताओं के बेटे-बेटियां, बहुएं, भांजे-भतीजे समेत चार दर्जन से ज्यादा नजदीकी रिश्तेदारों को टिकट देने में दिलेरी दिखाई है।
वैसे देखा जाए तो राजनीति में वंश को विरासत सौंपने का चलन कांग्रेस में शुरू हुआ। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अपने शासनकाल में ही इंदिरा गांधी को पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनवा दिया था। इंदिरा गांधी के समय में ही उनके पुत्र संजय गांधी का पार्टी में इतना महत्व बढ़ गया था कि उनकी हर जगह तूती बोलती थी।
इंदिरा की हत्या के बाद कांग्रेस ने अपना और देश का नेता राजीव गांधी को चुना। फिर सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बाद अब प्रियंका गांधी। यहां तक कि भाजपा भी अछूती नहीं रही।
कांग्रेस से शुरू हुई इस परिपाटी से बिहार की सियासत भी अछूती नहीं रही। पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह और समाजवादी नेता जननायक कपूर्री ठाकुर ने जीते-जी अपने पुत्रों को राजनीति में नहीं आने दिया, किंतु बाद में स्थिति बदल गई। श्रीकृष्ण सिंह के पुत्र बंदीशंकर सिंह विधायक बने और मंत्री भी। कर्पूरी ठाकुर के पुत्र रामनाथ ठाकुर ने भी पिता के प्रताप से मंत्री पद तक हासिल किया।
रोचक यह कि कांग्रेस में जिस परंपरा की शुरूआत प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने की थी, उसे बिहार में कांग्रेस के दो दिग्गज ललित नारायण मिश्र और अनुग्रह नारायण सिंह ने बखूबी आगे बढ़ाने का काम किया। पूर्व मुख्यमंत्री हरिहर सिंह के पुत्र मृगेंद्र प्रताप सिंह और उनके भाई अमरेंद्र प्रताप सिंह ने भी राजनीति में खूब शोहरत बटोरी।
टाटा कर्मचारी यूनियन के नेता रहे मृगेंद्र प्रताप सिंह झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचे। वहीं अमरेंद्र प्रताप सिंह बिहार की राजनीति में नाम कमाया। कांग्रेस के धाकड़ नेता एलपी शाही की बहू वीणा शाही भी विधायक व मंत्री रहीं। बिहार विभूति अनुग्रह नारायण सिंह के पुत्र सत्येंद्र नारायण सिंह मुख्यमंत्री बने। परंपरा आगे बढ़ी।
उनके पुत्र निखिल कुमार औरंगाबाद से सांसद एवं बाद में राज्यपाल पद तक पहुंचे। उनकी पत्नी श्यामा सिन्हा भी औरंगाबाद की सांसद रहीं। कांग्रेस के एक और कद्दावर नेता ललित नारायण मिश्र का परिवार सियासत में कभी पीछे नहीं रहा। उनके भाई जगन्नाथ मिश्र दो-दो बार मुख्यमंत्री बने। उनके पुत्र नीतीश मिश्र अभी बिहार सरकार में मंत्री हैं। इसी तरह ललित नारायण मिश्र के पुत्र विजय मिश्र एमएलसी और उनके पुत्र ऋषि मिश्र भी विधायक रह चुके हैं।
राजद के प्रमुख लालू प्रसाद बिहार के दो बार मुख्यमंत्री बने। फिर चारा घोटाले के आरोप में जेल गए तो पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया। अभी राबड़ी देवी बिहार विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष हैं। वहीं उनके छोटे पुत्र तेजस्वी प्रसाद यादव बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं। लालू-राबड़ी के बड़े पुत्र तेज प्रताप यादव विधायक हैं और पूर्व में मंत्री रह चुके हैं। लालू-राबड़ी की बड़ी पुत्री डॉ. मीसा भारती सांसद हैं।
लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के संस्थापक रामविलास पासवान खुद वीपी सिंह से लेकर नरेन्द्र मोदी की सरकार में कई मंत्रालयों को संभाला। खास बात यह कि रामविलास पासवान के परिवार के लोग ही पार्टी के सारे पद संभालते थे। रामविलास पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष होते थे।
दूसरे भाई पशुपति कुमार पारस प्रदेश अध्यक्ष और तीसरे भाई रामचंद्र पासवान संसदीय दल के नेता। अब पुत्र चिराग उसी राह पर चल रहे हैं। रामविलास पासवान के जीवित रहते उनके भाई रामचंद्र पासवान और पशुपति कुमार पारस, पुत्र चिराग पासवान एवं भतीजा प्रिंस पासवान सांसद रहे।
उनके निधन के बाद लोजपा दो हिस्से में बंट गई। तब एक धड़ा राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी का नेतृत्व कर रहे पारस केंद्र सरकार में मंत्री पद तक पहुंचे।दूसरे धड़े की कमान संभाल रहे चिराग पासवान अभी केंद्रीय मंत्री हैं। उनके बहनोई अरुण भारती जमुई से सांसद हैं। इस विधानसभा चुनाव में चिराग ने भांजे सीमांत मृणाल को गरखा विधानसभा से उम्मीदवार बनाया है।
इसी तरह हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के संरक्षक और केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी सियासत में फैमिली को आगे बढ़ाने में पीछे नहीं हैं। उनका पुत्र डॉ.संतोष कुमार सुमन नीतीश सरकार में मंत्री हैं तो बहु दीपा मांझी और समधीन ज्योति देवी विधायिका हैं। मांझी ने इस चुनाव में भी बहु और समधीन को उम्मीदवार बनाया है। रोचक यह कि राजनीतिक परिवारों के लिए पार्टियां जागीर से कम नहीं होती हैं।
लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) की सांसद वीणा सिंह और जदयू के एमएलसी दिनेश सिंह की पुत्री कोमल सिंह गायघाट से जदयू की उम्मीदवार हैं। इसी तरह पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला और उनकी पत्नी व पूर्व विधायक अन्नु शुक्ला की पुत्री शिवानी शुक्ला लालगंज से राजद की उम्मीदवार हैं। पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह के दो-दो पुत्र भी जदयू से विधायक रहे। अभी सुमित कुमार सिंह नीतीश सरकार में मंत्री हैं और इस चुनाव में चकाई सीट से जदयू के उम्मीदवार हैं।
समाजवादी नेता जगदेव प्रसाद वर्मा के पुत्र नागमणि और उनकी पत्नी सुचित्रा सिन्हा भी विधायक, सांसद और मंत्री पद तक पहुंची। भाजपा के दिग्गज नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ.सीपी ठाकुर के पुत्र विवेक ठाकुर पहले विधान पार्षद बनाए गए और फिर सांसद। हुकुमदेव नारायण यादव के पुत्र अशोक यादव विधायक बन चुके है।
भाजपा के पूर्व राज्यसभा सदस्य गोपाल नारायण सिंह के पुत्र त्रिविक्रम सिंह को औरंगाबाद सीट से प्रत्याशी बनाया गया है। वीआइपी प्रमुख मुकेश सहनी ने अपने भाई संतोष सहनी को गौड़ा-बौराम से उम्मीदवार बनाया है। रालोमो के अध्यक्ष व पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा ने पत्नी स्नेहलता कुशवाहा को सासाराम से उम्मीदवार बनाया है। यानी, बिहार की सियासत में ”फैमिली फर्स्ट” का फॉमूर्ला जोर पकड़ता जा रहा है।
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