साल था 1959 जगह थी अमृतसर, जब भारतीय सेना के कुछ अधिकारी और उनकी पत्नियाँ अपने एक सहकर्मी को छोड़ने के लिए रेलवे स्टेशन गए हुए थे। कुछ मनचलों ने महिलाओं पर अभद्र टिप्पणी की और उनके साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश की। सेना के अधिकारियों ने उन गुंडों का पीछा किया जो पास के सिनेमा थिएटर में शरण लिए हुए थे !
मामले की सूचना कमांडिंग ऑफिसर कर्नल ज्योति मोहन सेन को दी गई थी, घटना के बारे में जानने पर कर्नल ने सिनेमा हॉल को सैनिकों से घेरने का आदेश दिया, सभी गुंडों को घसीट कर बाहर निकाला गया और गुंडों का सरदार इतना मदमस्त और सत्ता के नशे में चूर था… जो कोई और नहीं बल्कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के करीबी सहयोगी और पंजाब के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों के बेटे थे !
सभी गुंडों को उनके अंडरवियर उतारकर अमृतसर की सड़कों पर घुमाया गया और बाद में छावनी में नजरबंद कर दिया गया, अगले दिन मुख्यमंत्री क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने बेटे को भारतीय सेना की कैद से छुड़ाने की कोशिश की !
तुम्हें पता है क्या हुआ?
उनके वाहन को वीआईपी वाहन के रूप में छावनी में जाने की अनुमति नहीं दी गई, उन्हें कर्नल से मिलने के लिए पूरे रास्ते पैदल चलने के लिए मजबूर किया गया… क्रोधित मुख्यमंत्री कैरों ने पूरे मामले की शिकायत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से की !
हैरान तथाकथित भारत रत्न प्रधान मंत्री नेहरू ने अपने विश्वासपात्र प्रताप सिंह कैरों से सवाल करने के बजाय अपने अधिकारियों के आचरण के लिए सेना प्रमुख जनरल थिमय्या से स्पष्टीकरण मांगा…
तुम्हें पता है क्या उत्तर दिया?
“यदि हम अपनी महिलाओं के सम्मान की रक्षा नहीं कर सकते तो आप हमसे अपने देश के सम्मान की रक्षा की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?”
नेहरू जी अवाक रह गए, वह एक बहादुर सैनिक की कहानी थी जिसने प्रधान मंत्री को चुनौती दी थी।
_*यह लेख “भारतीय सैनिक को सलाम” पत्रिका में मेजर जनरल ध्रुव सी कटोच द्वारा योगदान दिया गया था, इसे साझा करने की आवश्यकता है। अतः आप सभी से अनुरोध है कि इस लेख को अधिक से अधिक मोबाइल नम्बरों में भेजने का प्रयास करें ताकि सच्चाई सबके सामने आ सके | ( बिरजू जी सिद्धेश्वरी मां बांस घाट काली मंदिर पटना)